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Wednesday, April 4, 2018

भारत में दलितों पर होने वाले अत्‍याचारों की हकीकत


भारत में दलितों पर होने वाले अत्‍याचारों की हकीकत
  


 
इतनी तेजी से तो देश भी तरक्की नहीं कर रहा जितनी तेजी से दलितों पर अत्याचार के आंकड़े बढ़े हैं। अत्याचार की कहानी यूं तो सदियों से चली आ रही है लेकिन आंकड़ों की स्क्रिप्ट कुछ और ही बयां करती है। दलितों के साथ होने वाले अत्याचार के मामले में साल 2009 में 33,594, 2010 में 32,712, 2011 में  33,719, 2012 में 33,655, 2013 में 39,408 तथा 2014 में 47,064 आंकड़े दर्ज किए गए। राष्ट्रीय आंकड़ों के मुताबिक 2016 में अनुसूचित जाति के खिलाफ अपराधिक मामलों में 2015 के मुकाबले 5.5 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। 2016 में कुल 40,801 मामले दर्ज हुए हैं, जबकि 2015 में ये आंकड़ा 38,670 तक ही था। उत्तर प्रदेश में इस प्रकार के 10,426 आंकड़ें दर्ज हुए हैं, जो कि पूरे मामलों के 25.6 फीसदी हैं। इसके बाद बिहार का नंबर आता है, जहां लगभग 14 फीसदी अपराध हुए हैं। 2016 में मध्यप्रदेश में दलितों के खिलाफ 43.4 फीसदी संज्ञेय अपराध हुए हैं, जबकि राजस्थान में ये आंकड़ा 42 फीसदी है। गोवा में 36.7 फीसदी, 34.4 फीसदी बिहार में और 32.5 फीसदी गुजरात में। पूरे देश में अनुसूचित जाति के खिलाफ अपराध का आंकड़ा 20.6 फीसदी था।
वहीं इससे इतर आंकड़ों पर गौर किया जाए तो दलितों पर अत्याचार के मामले में मध्य प्रदेश पहले स्थान पर है। यहां 4,922 अपराध दर्ज किए गए। अपराध की दर 43.4 फीसदी रही जो कि राष्ट्रीय दर 20.3 से दोगुनी हैं। इसी प्रकार राजस्थान दलित अपराध में देश में दूसरे नंबर पर हैं, जहां 5,134 अपराध हुए हैं। उसकी दर 42.0 प्रतिशत रही जो कि राष्ट्रीय दर (20.3) से दोगुनी है। गोवा तीसरे स्थान पर है जहां अपराध दर 36.7 रही। गुजरात का स्थान 5वां है जहाँ अपराध दर 32.2 है जो कि राष्ट्रीय दर 20.3 से लगभग डेढ़ गुना है।
यह केवल वह आंकड़े हैं जो थानों में दर्ज कराए गए। इनके अलावा कितने दलितों को अत्याचार का चाबुक सहना पड़ता है इसका अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता। एनसीआरबी द्वारा जारी किए गए 2014 के आंकड़ों के अनुसार देश भर में दलितों पर अत्याचार के 47,064 मामले सामने आए। जो वर्ष 2009 से 13,652 अधिक हैं। आंकड़े साफ-साफ बयां करते हैं कि दलितों पर अत्याचार साल दर साल लगातार बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं। 
वहीं दलित महिलाओं की बात की जाए तो दलित महिलाओं की स्थिति भी ठीक नहीं रहीं है। साल 2015 के मुकाबले 2016 में दलित महिलाओं पर अत्याचार के मामलों में बढ़ोतरी दर्ज की गई है। साल 2015 में जहां रेप के 444 मामले प्रदेश में दर्ज किए गए थे। वहीं 2016 में दर्ज मामलों की संख्या 557 पहुंच गई। इसके अलावा रेप के प्रयास के 77 मामले दर्ज किए गए जबकि साल 2015 में यह आंकड़ा महज 22 था। यौन उत्पीड़न के मामलों में भी इजाफा दर्ज किया गया है। 2016 में 874 मामले दर्ज किए गए हैं जबकि साल 2015 में 704 मामले दर्ज किए गए थे। इस तरह के मामलों में हो रहे इजाफे पर केंद्र सरकार ने हाल में दिल्ली में एक बैठक की। इसमें प्रदेश सरकार की तरफ से समाज कल्याण मंत्री रमापति शास्त्री ने दलितों पर बढ़ते अत्याचार की रिपोर्ट और सरकार का पक्ष रखा। रिपोर्ट के मुताबिक साल 2015 में दलितों पर अत्याचार के कुल 8,460 मामले दर्ज किए गए थे जबकि साल 2016 में आपराधिक मामलों का आंकड़ा बढ़कर 10,492 हो गया था
इन अपराधों पर अंकुश लगाने वाले कानूनों की कोई कमी नहीं है, पर संभवत उनका क्रियान्वयन ठीक से नहीं होने के कारण दलितों पर अपराध लगातार बढ़ते जा रहे हैं। वैसे इन आंकड़ों को देखकर नहीं लगता कि दलित स्‍वतंत्र भारत में रह रहे हैं और उनकी स्थिति में सुधार आया हो....बाकि कोई भी किसी की भी सरकार सत्‍ता में काबिज हो जाए.... दलितों पर अत्‍याचार रोकेंगे के लिए कोई भी प्रभाव कदम उठाती दिखाई नहीं प्रतीत होती है। ऐसा लगता है कि इनकी स्थिति जानवरों के भी बद्तर समझी जा रही है क्‍योंकि प्रबुद्ध वर्ग के लोग आज भी नहीं चाहते की यह उनके समान, समकक्ष खड़े हो सके। तभी तो आंकड़े पूरी दास्‍तान बयां करते दिखाई देते हैं।


1 comment:

HARSHVARDHAN said...

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन पंडित माखनलाल चतुर्वेदी और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।